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स्वतंत्रता सेनानी राजा बख्तावर सिंह

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बलिदान दिवस – 10 फरवरी मध्य प्रदेश के धार जिले में विन्ध्य पर्वत की सुरम्य शृंखलाओं के बीच द्वापरकालीन ऐतिहासिक अझमेरा नगर बसा है। 1856 में यहाँ के राजा बख्तावरसिंह ने अंग्रेजों से खुला युद्ध किया; पर उनके आसपास के कुछ राजा अंग्रेजों से मिलकर चलने में ही अपनी भलाई समझते थे। राजा ने इससे हताश न होते हुए तीन जुलाई, 1857 को भोपावर छावनी पर हमला कर उसे कब्जे में ले लिया। इससे घबराकर कैप्टेन हचिन्सन अपने परिवार सहित वेश बदलकर झाबुआ भाग गया। क्रान्तिकारियों ने उसका पीछा किया; पर झाबुआ के राजा ने उन्हें संरक्षण दे दिया। इससे उनकी जान बच गयी। भोपावर से बख्तावर सिंह को पर्याप्त युद्ध सामग्री हाथ लगी। छावनी में आग लगाकर वे वापस लौट आये। उनकी वीरता की बात सुनकर धार के 400 युवक भी उनकी सेना में शामिल हो गये; पर अगस्त, 1857 में इन्दौर के राजा तुकोजीराव होल्कर के सहयोग से अंग्रेजों ने फिर भोपावर छावनी को अपने नियन्त्रण में ले लिया। इससे नाराज होकर बख्तावर सिंह ने 10 अक्तूबर, 1857 को फिर से भोपावर पर हमला बोल दिया। इस बार राजगढ़ की सेना भी उनके साथ थी। तीन घंटे के संघर्ष के बाद सफलता एक...

जाने भोजशाला के बारे में कुछ तथ्य!!

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ब्रिटिश म्यूजियम में कैद मां सरस्वती की इकलौती 1000 साल पुरानी चमत्कारी प्रतिमा बसंत पंचमी अर्थात मां सरस्वती का पूजन-अर्चन। धरती जब पीले फूलों का श्रृंगार करती है तब वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की अराधना की जाती है। आज  हम आपको बताने जा रहे है सरस्वती मां के एकमात्र मंदिर के बारे में जहां मां सरस्वती साक्षात रुप में विराजित थी और आज ब्रिटिश म्यूजियम में कैद है। मां सरस्वती की यह मूर्ति चामात्कारी मानी जाती   है । जी हां, धार की भोजशाला में राजा भोज ने सरस्वती मां की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की थी। महाराजा भोज के लिए कहा जाता है कि वे मां सरस्वती के पुत्र थे। धार की भोजशाला उनकी तपोभूमि थी। यहां राजा भोज की तपस्या और साधना से प्रसन्न हो कर मां सरस्वती ने स्वयं प्रकट हो दर्शन दिए थे। मां के दर्शन पाने के बाद राजा भोज ने ( 1010 से 1055) स्वयं अपने हाथों से इस अप्रतिम प्रतिमा को तराशा था। वहीं कुछ लोगों का मानना था कि प्रसिद्ध मूर्तिकार मंथल ने इस मूर्ति को तराशा। भूरे रंग की स्फटिक से निर्मित यह प्रतिमा अत्यंत ही चमत्कारिक, मनमोहक औऱ शांत मुद्रा वाली है।...