महाराजा भोज की वंशावली
वीआईपी रोड के किनारे बुर्ज पर स्थापित राजा भोज भोपाल
जय राजा भोज ...
परमारों के राज्य १. मालवा के वीर विक्रमादित्य और राजा भोज जिन्होंने अपना डंका पूरी प्रथ्वी पर बजाय
१.मालवा :- मालवा के परमारों के शासकों के पूर्वजों में सबसे पहला नाम उपेन्द्र मिलता हे | परमारों का शिलालेखीय आधार पर सबसे प्रथम व्यक्ति धूमराज था | मालूम होता हे वह व्यक्ति मालवा व् आबू के परमारों का पूर्व पुरुष था सही वंशक्रम कृष्णराज (उपेन्द्र ) से प्रारंभ होता हे जिसका दूसरा नामकृष्णाराज भी था | उदयपुर प्रश्ति से ज्ञात होता हे की उसने राजा होने के सम्मान प्राप्त किया उसने कई यग्य किये यह प्रश्ति ११५८-१२५७ के मध्य की है | इसके बाद क्रमशः बैरसी ,सीयक ,व् वाक्पति गद्धी पर बेठे | उसके विषय में उदयपुर ग्वालियर राज्य के शिलालेख में लिखा हे | की उसके घोड़े गंगा समुन्द्र में पानी पीते थे | संभवत वाक्पति राष्ट्रकूटो का सामंत था | उनके द्वारा गंगा तक किये गए आक्रमणों में वह भी साथ था | इसका पुत्र बैरसी 11 भी वीर हुआ | उसके वि. सं. १००५ माघ बदी अमावस्या के दानपत्र से विदित होता हे की वह राष्ट्रकूटों का सामंत था | परन्तु वि.सं. १०२९ ई.सं,. ९७२ में उसने राष्ट्रकूट शासक खोट्टीग्देव पर चढ़ाई की और उसेहरा कर पराधीनता का जुआ फेंक दिया पाईललछी नाम माला -धनपाल इसने हूणों को भी हराया | इसके दो पुत्र मुंज व् सिन्धुराज थे | मेरुतंग की प्रबंध चिंतामणि से ज्ञात होता हे की मुंज सीयक का और सपुत्र नहीं था | वह उसे मुंज घास पर पड़ा मिला था | मुंज घास पर पड़ा मिलने के कारन उसका नाम मुंज रखा | बाद में उसके भी पुत्र हो गया जिसका नाम सिन्धुराज रखा था | सीयक का मुंज पर अधिक प्रेम था | इस कारन उसे हि अपना उतराधिकारी चुना और निश्चय किया गया की मुंज के बाद उसका भाई सिन्धुराज उतराधिकारी बनेगा | मुंज घास पर बालक के मिलने की कहानी कल्पित मालूम देती हे | वास्तव में मुंज व् सिन्धुराज दोनों हि सीयक के भाई थे |
मुंज सीयक सेकंड का उतराधिकारी हुआ | मुंज की वाक्पति उल्पलराज ,अमोध्वर्ष ,प्रथ्वीवल्लभ आदी उपाधिया थी | अतः मुंज की शिलालेख में वाक्पति,उत्पल आदी नमो से भी अंकित किया गया है | मुंज का समय १०३० से १०५१ वि.तक था | इस समय में उसने चेदी नरेश युवराज को पराष्त कर उसकी राजधानी त्रिपुरी पर अधिकार कर लिया | मेवाड़ के शासक शक्तिकुमार वि.१०३४ को परास्त किया तथा किराडू प्रदेश बलिराज से जीतकर कोथेम दानपत्र और नवसाहसांक धस्ती से इस विजय की पुष्टि होती होती है | अपने पुत्र अरण्यराज को आबू दे दिया | जालोर आपने पुत्र चन्दन को तथा भीनमाल आपने भतीजे दूसाल को दे दिया | इस शासक ने मूलराज सोलंकी को भी हराया था तब धवल हस्तीकुंडी का राष्ट्रकूट से रक्षा से प्राथना की | धवल ने उसकी सहायता की | मुंज ने वाक्पति तैलप को कई बार हराया | अतः तैलप चालुक्य ने उसे केद कर लिया | जेल में हि मुंज का तैलप की पुत्री मृणालवती से प्रेम हो गया | मुलम होने पर तैलप ने मुंज को मरवा दिया |
मुंज स्वयं ऐक अच्छा विद्वान् था तथा विद्वानों का सम्मान करने वाला भी आदमी था | उसके दरबार में नवसाह सांक का करता पदमगुप्त,दशरूपक का करता धनज्जय ,धनज्जय का भाई धनिक ,'पिगलछन्दसूत्र 'की टीका करने वाला हलायुद्ध ,सुभाषितरत्नसन्दोह का करता अमितगती ,धनपाल आदी प्रसिद्द विद्वान् रहते थे | मंजू के बाद उसका भाई सिन्धुराज गद्धी पर बैठा | इस शासक ने हूँण ,कौशल ,बागड़ लाट और नागों के राज्य बैरगढ म.प्र. को विजय किया | इस नविन साहस के कारन इसे नवसाहसांक कागा गया | नागों ने सिन्धुराज से मैत्री बढ़ाने के लिए अपनी पुत्री शशिप्रभा का विवाह सिन्धुराज से कर दिया | सिन्धुराज वि.सं.१०६६ से कुछ पूर्व गुजरात के सोलंकी चामुंडाराज के साथ हुयी लड़ाई में मारा गया |
सिन्धुराज के बाद उसका पुत्र भोज गद्धी पर बैठा | यह मालवा के परमारों में अत्यधिक ख्याति प्राप्त शासक हुआ | उदयपुर के शिलालेख में मलय पर्वत से दक्षिण तक राज्य करना लिखा है | इस राजा ने इंद्ररथ तोग्ग्ल ,भीम आदी को पराजीत किया तथा कर्नाट ,गुर्जर (गुजरात ) और तुरुश्कों (मुसुल्मानो ) को जीता | कलचुरी गांगेयदेव को जीता | उसने तैलप के वंशज जय सिंह चालुक्य को जीतकर मुंज की म्रत्यु का बदला लिया | प्रथ्विराज विजय से ज्ञात होता हे की भोज ने चौहान वीर्यराज को भी मारा | भोज का चंद्रेल शासक विद्याधर चंदेल व् ग्वालियर के कच्छपघात (कछवाह ) कीर्तिराज व् नाडोल ने अणहिल से भी संघर्ष हुआ पर इन तीनो संघर्षों में भोज का पराजय का मुंह देखना पड़ा कलचुरी व् गुजरात के सोलंकी दोनों हि भोज के शत्रु थे | भोज के अंतिम समय में भीम सोलंकी व् गांगेय का पुत्र कर्ण ने मिलकर भोज पर आक्रमण किया | इसी समय भोज का देहांत हो गया | राजा भोज स्वयं विधारसिक एवं विद्वान् थे | उसने स्वयं सरस्वती कंठाभरण (अलंकार शास्त्र ) राजमार्तण्ड (योग शास्त्र ) राज्म्रगांक ,विद्व्जन्न मंडन (ज्योतिष शास्त्र ) समरांगण (शिल्प शास्त्र ) आदी ग्रन्थ लिखे| धारा नगरी में सरस्वती कंडाभरण नामक शिक्षा संसथान बनवाई जिसमे कूर्मशतक ,भ्रतहरिकारिका आदी ग्रंथो को शिलाओं पर खुदवाया | उसके दरबार में अनेक विद्वान् रहते थे |
उन विद्वानों में भोज प्रबंध का करता पंडित बल्लाल ,प्रबंध चिंतामणि का कर्ता ,मेरुतुन्ग्लिक मंजरी हका करता कर्ता धनपाल ,यजुर्वेद का वाजसनेयी संहिता का कर्ता बजट का पुत्र उवट आदी का विशेष स्थान है |
यह राजा कला और धर्म में पूर्ण आस्था रखने वाला राजा था | इसने कई भव्य मंदिरों व् झीलों का निर्माण करवाया ,जिनमे चितोड़ स्थ्ति त्रिभुवन नारायण का विशाल शिव मंदिर ,अम्बाजी का मंदिर तथा भोपाल की विशाल शिव मंदिर ,अम्बाजी का मंदिर तथा भोपाल की विशाल झील (भूपाल ताल के नाम से प्रसिद्ध ) आदी प्रमुख है | भोज का सबसे पहला ताम्रपत्र वि.सं. १०९९ ई. १०४२ तथा उसके उतराधिकारी जय सिंह का ताम्रपात्र वि.सं.१११२ ई.१०५५ का है | इससे मालूम पड़ता है की भोज की म्रत्यु वि १०९९ से वि. १११२ के मध्य किसी समय हुयी |
भोज का उतराधिकारी जयस
-पोस्ट साभार "जय राजा भोज कम्युनिटी"
१.मालवा :- मालवा के परमारों के शासकों के पूर्वजों में सबसे पहला नाम उपेन्द्र मिलता हे | परमारों का शिलालेखीय आधार पर सबसे प्रथम व्यक्ति धूमराज था | मालूम होता हे वह व्यक्ति मालवा व् आबू के परमारों का पूर्व पुरुष था सही वंशक्रम कृष्णराज (उपेन्द्र ) से प्रारंभ होता हे जिसका दूसरा नामकृष्णाराज भी था | उदयपुर प्रश्ति से ज्ञात होता हे की उसने राजा होने के सम्मान प्राप्त किया उसने कई यग्य किये यह प्रश्ति ११५८-१२५७ के मध्य की है | इसके बाद क्रमशः बैरसी ,सीयक ,व् वाक्पति गद्धी पर बेठे | उसके विषय में उदयपुर ग्वालियर राज्य के शिलालेख में लिखा हे | की उसके घोड़े गंगा समुन्द्र में पानी पीते थे | संभवत वाक्पति राष्ट्रकूटो का सामंत था | उनके द्वारा गंगा तक किये गए आक्रमणों में वह भी साथ था | इसका पुत्र बैरसी 11 भी वीर हुआ | उसके वि. सं. १००५ माघ बदी अमावस्या के दानपत्र से विदित होता हे की वह राष्ट्रकूटों का सामंत था | परन्तु वि.सं. १०२९ ई.सं,. ९७२ में उसने राष्ट्रकूट शासक खोट्टीग्देव पर चढ़ाई की और उसेहरा कर पराधीनता का जुआ फेंक दिया पाईललछी नाम माला -धनपाल इसने हूणों को भी हराया | इसके दो पुत्र मुंज व् सिन्धुराज थे | मेरुतंग की प्रबंध चिंतामणि से ज्ञात होता हे की मुंज सीयक का और सपुत्र नहीं था | वह उसे मुंज घास पर पड़ा मिला था | मुंज घास पर पड़ा मिलने के कारन उसका नाम मुंज रखा | बाद में उसके भी पुत्र हो गया जिसका नाम सिन्धुराज रखा था | सीयक का मुंज पर अधिक प्रेम था | इस कारन उसे हि अपना उतराधिकारी चुना और निश्चय किया गया की मुंज के बाद उसका भाई सिन्धुराज उतराधिकारी बनेगा | मुंज घास पर बालक के मिलने की कहानी कल्पित मालूम देती हे | वास्तव में मुंज व् सिन्धुराज दोनों हि सीयक के भाई थे |
मुंज सीयक सेकंड का उतराधिकारी हुआ | मुंज की वाक्पति उल्पलराज ,अमोध्वर्ष ,प्रथ्वीवल्लभ आदी उपाधिया थी | अतः मुंज की शिलालेख में वाक्पति,उत्पल आदी नमो से भी अंकित किया गया है | मुंज का समय १०३० से १०५१ वि.तक था | इस समय में उसने चेदी नरेश युवराज को पराष्त कर उसकी राजधानी त्रिपुरी पर अधिकार कर लिया | मेवाड़ के शासक शक्तिकुमार वि.१०३४ को परास्त किया तथा किराडू प्रदेश बलिराज से जीतकर कोथेम दानपत्र और नवसाहसांक धस्ती से इस विजय की पुष्टि होती होती है | अपने पुत्र अरण्यराज को आबू दे दिया | जालोर आपने पुत्र चन्दन को तथा भीनमाल आपने भतीजे दूसाल को दे दिया | इस शासक ने मूलराज सोलंकी को भी हराया था तब धवल हस्तीकुंडी का राष्ट्रकूट से रक्षा से प्राथना की | धवल ने उसकी सहायता की | मुंज ने वाक्पति तैलप को कई बार हराया | अतः तैलप चालुक्य ने उसे केद कर लिया | जेल में हि मुंज का तैलप की पुत्री मृणालवती से प्रेम हो गया | मुलम होने पर तैलप ने मुंज को मरवा दिया |
मुंज स्वयं ऐक अच्छा विद्वान् था तथा विद्वानों का सम्मान करने वाला भी आदमी था | उसके दरबार में नवसाह सांक का करता पदमगुप्त,दशरूपक का करता धनज्जय ,धनज्जय का भाई धनिक ,'पिगलछन्दसूत्र 'की टीका करने वाला हलायुद्ध ,सुभाषितरत्नसन्दोह का करता अमितगती ,धनपाल आदी प्रसिद्द विद्वान् रहते थे | मंजू के बाद उसका भाई सिन्धुराज गद्धी पर बैठा | इस शासक ने हूँण ,कौशल ,बागड़ लाट और नागों के राज्य बैरगढ म.प्र. को विजय किया | इस नविन साहस के कारन इसे नवसाहसांक कागा गया | नागों ने सिन्धुराज से मैत्री बढ़ाने के लिए अपनी पुत्री शशिप्रभा का विवाह सिन्धुराज से कर दिया | सिन्धुराज वि.सं.१०६६ से कुछ पूर्व गुजरात के सोलंकी चामुंडाराज के साथ हुयी लड़ाई में मारा गया |
सिन्धुराज के बाद उसका पुत्र भोज गद्धी पर बैठा | यह मालवा के परमारों में अत्यधिक ख्याति प्राप्त शासक हुआ | उदयपुर के शिलालेख में मलय पर्वत से दक्षिण तक राज्य करना लिखा है | इस राजा ने इंद्ररथ तोग्ग्ल ,भीम आदी को पराजीत किया तथा कर्नाट ,गुर्जर (गुजरात ) और तुरुश्कों (मुसुल्मानो ) को जीता | कलचुरी गांगेयदेव को जीता | उसने तैलप के वंशज जय सिंह चालुक्य को जीतकर मुंज की म्रत्यु का बदला लिया | प्रथ्विराज विजय से ज्ञात होता हे की भोज ने चौहान वीर्यराज को भी मारा | भोज का चंद्रेल शासक विद्याधर चंदेल व् ग्वालियर के कच्छपघात (कछवाह ) कीर्तिराज व् नाडोल ने अणहिल से भी संघर्ष हुआ पर इन तीनो संघर्षों में भोज का पराजय का मुंह देखना पड़ा कलचुरी व् गुजरात के सोलंकी दोनों हि भोज के शत्रु थे | भोज के अंतिम समय में भीम सोलंकी व् गांगेय का पुत्र कर्ण ने मिलकर भोज पर आक्रमण किया | इसी समय भोज का देहांत हो गया | राजा भोज स्वयं विधारसिक एवं विद्वान् थे | उसने स्वयं सरस्वती कंठाभरण (अलंकार शास्त्र ) राजमार्तण्ड (योग शास्त्र ) राज्म्रगांक ,विद्व्जन्न मंडन (ज्योतिष शास्त्र ) समरांगण (शिल्प शास्त्र ) आदी ग्रन्थ लिखे| धारा नगरी में सरस्वती कंडाभरण नामक शिक्षा संसथान बनवाई जिसमे कूर्मशतक ,भ्रतहरिकारिका आदी ग्रंथो को शिलाओं पर खुदवाया | उसके दरबार में अनेक विद्वान् रहते थे |
उन विद्वानों में भोज प्रबंध का करता पंडित बल्लाल ,प्रबंध चिंतामणि का कर्ता ,मेरुतुन्ग्लिक मंजरी हका करता कर्ता धनपाल ,यजुर्वेद का वाजसनेयी संहिता का कर्ता बजट का पुत्र उवट आदी का विशेष स्थान है |
यह राजा कला और धर्म में पूर्ण आस्था रखने वाला राजा था | इसने कई भव्य मंदिरों व् झीलों का निर्माण करवाया ,जिनमे चितोड़ स्थ्ति त्रिभुवन नारायण का विशाल शिव मंदिर ,अम्बाजी का मंदिर तथा भोपाल की विशाल शिव मंदिर ,अम्बाजी का मंदिर तथा भोपाल की विशाल झील (भूपाल ताल के नाम से प्रसिद्ध ) आदी प्रमुख है | भोज का सबसे पहला ताम्रपत्र वि.सं. १०९९ ई. १०४२ तथा उसके उतराधिकारी जय सिंह का ताम्रपात्र वि.सं.१११२ ई.१०५५ का है | इससे मालूम पड़ता है की भोज की म्रत्यु वि १०९९ से वि. १११२ के मध्य किसी समय हुयी |
भोज का उतराधिकारी जयस
-पोस्ट साभार "जय राजा भोज कम्युनिटी"
अति उत्तम जानकारी प्राप्त हुईं,आपके बहुत आभारी हैं।
जवाब देंहटाएंमुझे परमार वंश की और जानकारी चाहिए।
जवाब देंहटाएंमै भी परमार वंश से हूं। और हमारे वंशज महाराज धी राज भोज हैं ।
कॉल करे
क्या आप राजपूत है
हटाएंराजकुमार बोपचे
जवाब देंहटाएंPawar ki history chahiye
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