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जाने धार के काल भैरव मंदिर के बारे में

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ऐतिहासिक है कालभैरव----- ऐसी पौराणिक मान्यता है की धार के कालभैरव की स्थापना उज्जैन के कालभैरव से एक दिन पहले हुई थी। उस समय के तांत्रिक रत्ननागर ने धार राज्य की रक्षा के लिए इन भैरव की स्थापना की थी। और एक प्रतिमा को तंत्र द्वारा दो कर के दूसरी उज्जैन में स्थिपित की थी। एक समय धार का कालभैरव मंदिर तंत्र का महाविद्यालय हुआ करता था!जहा दूर दूर से विद्यार्थी तंत्र की शिक्षा प्राप्त करने आते थे! आज भी मंदिर के पास बहुत सारे पत्थरो से निर्मित कमरे बने हुए है। उस समय के एक सिद्ध तांत्रिक रत्ननागर यहाँ तंत्र की शिक्षा  दिया करते थे!आज भी उनकी समाधी इस जगह बनी हुऐ है! मंदिर के पास ही एक विशाल तालाब है नट नागरा तालाब कहा जाता है!

14 डिग्री झुके है धार के ये मंदिर

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पिसा की मीनार की तरह  धार के शिव मंदिर संसार की बहुत सी आश्चर्यजनक कलाक्रतियों मे से एक है पिसा की झुकी हुई मीनार !  यूरोप महाद्वीप के दक्षिण मे स्थित देश इटली का एक खूबसूरत शहर पिसा अपनी झुकी हुए मीनार के लिए पूरी दुनिया मे प्रसिद्ध है !  वास्तु शिल्प कला का एक अद्भुत नमूना है " लिनिग टावर ऑफ पिसा " !  सन 1173 मे इसका निर्माण शुरू हुआ था ! इसे बनने मे लगभग 200 साल लगे थे! बोनानों पिसानों इस मीनार को बनाने वाले प्रमुख वास्तुविद थे! मीनार का जमीन से झुकाव  13 डिग्री है! 14 डिग्री झुके है धार के ये मंदिर - धार जिला मुख्यालय से करीब 2 किमी दूर गड कालिका पहुच मार्ग पर ये शिव मंदिर स्थित  है! जिस स्थिति मे इन मंदिरो का निर्माण हुआ था आज  भी यह उसी स्थिति मे है!  लगभग 900 वर्ष से यह शिव मंदिर इसी तरह झुके हुए खड़े है!  पिसा की मीनार का जमीन से झुकाव 13 डिग्री है जबकि धार के ये मंदिर 14 डिग्री झुकाव लिए हुए है! एतिहासिक है ये शिव मंदिर - 13 वी शताब्दी मे परमारों के शासन काल मे इन मंदिरो का निर्माण हुआ था ! परमार शेली मे बने य...

कृषि और खनिज

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यह एक प्रमुख कृषि केंद्र है। ज्वार-बाजरा, मक्का, दालें और कपास यहाँ की प्रमुख फ़सलें है।  माही, नर्मदा व चंबल नदी प्रणाली से सिंचाई की जाती  है।

धार का इतिहास

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प्राचीन काल में धार शहर की स्थापना परमार राजा भोज ने की थी। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से धार मध्य प्रदेश का एक महत्त्वपूर्ण शहर है। बेरन पहाड़ियों से घिरे इस शहर को झीलों और हरे-भरे वृक्षों ने आच्छादित कर रखा है। इस शहर में अनेक हिन्दू और मुस्लिम स्मारकों के अवशेष देखे जा सकते हैं। एक जमाने में मालवा की राजधानी रहा यह शहर धार क़िला और भोजशाला (माँ सरस्वती का मंदिर ) की वजह से पर्याप्त संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करने में सफल रहता है। यह एक प्राचीन नगर है, जिसकी उत्पत्ति राजा मुंज वाक्पति से जुड़ी है। दसवीं और तेरहवीं सदी के भारतीय इतिहास में धार का महत्त्वपूर्ण स्थान था। नौवीं से चौदहवीं सदी में यह परमार राजपूतों के अधीन मालवा की राजधानी था। प्रसिद्ध राजा भोज (लगभग 1010-55) के शासनकाल में यह अध्ययन का विशिष्ट केंद्र था। उन्होंने इसे अत्यधिक प्रसिद्धि दिलाई। 14वीं सदी में इसे मुग़लों ने जीत लिया और 1730 में यह मराठों के क़ब्ज़े में चला गया, इसके बाद 1742 में यह मराठा सामंत आनंदराव पवार द्वारा स्थापित धार रियासत की राजधानी बना। धार की लाट मस्जिद या मीनार मस्जिद (1405) जैन मंदि...

महाराजा भोज की वंशावली

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वीआईपी रोड के किनारे बुर्ज पर स्थापित राजा भोज   भोपाल  जय रा जा भोज ... परमारों के राज्य १. मालवा के वीर विक्रमादित्य और राजा भोज जिन्होंने अपना डंका पूरी प्रथ्वी पर बजाय १.मालवा :- मालवा के परमारों के शासकों के पूर्वजों में सबसे पहला नाम उपेन्द्र मिलता हे | परमारों का शिलालेखीय आधार पर सबसे प्रथम व्यक्ति धूमराज था | मालूम होता हे वह व्यक्ति मालवा व् आबू के परमारों का पूर्व पुरुष था सही वंशक्रम कृष्णराज (उपेन्द्र ) से प्रारंभ होता हे जिसका दूसरा नाम कृष्णाराज भी था | उदयपुर प्रश्ति से ज्ञात होता हे की उसने राजा होने के सम्मान प्राप्त किया उसने कई यग्य किये यह प्रश्ति ११५८-१२५७ के मध्य की है | इसके बाद क्रमशः बैरसी ,सीयक ,व् वाक्पति गद्धी पर बेठे | उसके विषय में उदयपुर ग्वालियर राज्य के शिलालेख में लिखा हे | की उसके घोड़े गंगा समुन्द्र में पानी पीते थे | संभवत वाक्पति राष्ट्रकूटो का सामंत था | उनके द्वारा गंगा तक किये गए आक्रमणों में वह भी साथ था | इसका पुत्र बैरसी 11 भी वीर हुआ | उसके वि. सं. १००५ माघ बदी अमावस्या के दानपत्र से विदित होता हे की वह राष्ट्रकूटों ...

पढोगे तो रो पड़ोगे

जीवन के 20 साल हवा की तरह उड़ गए । फिर शुरू हुई नोकरी की खोज । ये नहीं वो, दूर नहीं पास । ऐसा करते करते 2 3 नोकरियाँ छोड़ते एक तय हुई। थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई। फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का चेक। वह बैंक में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले शून्यों का अंतहीन खेल। 2- 3 वर्ष और निकल गए। बैंक में थोड़े और शून्य बढ़ गए। उम्र 25 हो गयी। और फिर विवाह हो गया। जीवन की राम कहानी शुरू हो गयी। शुरू के एक 2 साल नर्म, गुलाबी, रसीले, सपनीले गुजरे । हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना, रंग बिरंगे सपने। पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए। और फिर बच्चे के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में पालना झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना बैठना खाना पीना लाड दुलार । समय कैसे फटाफट निकल गया, पता ही नहीं चला। इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया, बाते करना घूमना फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला। बच्चा बड़ा होता गया। वो बच्चे में व्यस्त हो गयी, मैं अपने काम में । घर और गाडी की क़िस्त, बच्चे की जिम्मेदारी, शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में शुन्य बढाने की चिंता। उसने भी अपने आप ...

धार के बारे

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धार प्राचीन काल में धार नगरी के नाम से विख्यात मध्य प्रदेश के इस शहर की स्थापना परमार राजा भोज ने की थी। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से यह मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण शहर है। यह मध्यकालीन शहर पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित है। बेरन पहाड़ियों से घिर इस शहर को झीलों और हरे-भरे वृक्षों ने आच्छादित कर रखा है। धार के प्राचीन शहर में अनेक हिन्दू और मुस्लिम स्मारकों के अवशेष देखे जा सकते हैं। एक जमाने में मालवा की राजधानी रहा यह शहर धार किला और भोजशाला की वजह से पर्याप्त संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करने में सफल रहता है। साथ ही इसके आसपास अनेक ऐसे दर्शनीय स्थल हैं जो पर्यटकों को रिझाने में कामयाब होते हैं।